" निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल ।।
अंग्रेजी पढिके जदपि, सब गुन होत प्रबीन ।
पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।।
विविध कला, शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार ।
सब देसन से लै करहु, निज भाषा माँहि प्रचार ।।
" प्राकृत-उद्गमित, सम्प्रेषणा-युक्त, जन-तन्द्रा-अन्तक, भावपूर्ण मातृभाषा है-हिंदी । डी ऐ वी कॉलेज के संस्कृत विभाग ने मनाया मातृभाषा दिवस "
डी ऐ वी कॉलेज के संस्कृत विभाग ने मातृभाषा दिवस का आयोजन किया। कालिदास संस्कृत परिषद की अध्यक्षता डॉ जीवन आशा ने मंच का संचालन किया। विभाग अध्यक्ष डॉ विजय कुमारी गुप्ता ने मातृभाषा की विशेषता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा,संस्कृत की मौलिक प्रथम उत्तराधिकारी भाषा हिंदी ही है जो की प्राकृत के रूप में देश की समस्त आधुनिक भाषाओं की जननी है एवं इसी कारण से हम इसे भारत की सर्वव्यापी भाषा का दर्जा देते हैं। साथ ही साथ यह कोई नयी जानने योग्य बात नहीं है की हिंदी विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। मातृभाषा में मां जैसी अंतरंगता और भावों की प्रधानता है। मातृभाषा से पढऩा लिखना, समझना व अभिव्यक्त करना अन्य पाश्चात्य भाषाओं की तुलना में सहज व सरल होता है। हम अपनी मातृभाषा का गौरव बढ़ाए, क्योंकि यह राष्ट्र निर्माण की प्रथम सीढ़ी है।
मुख्या अतिथि के रूप में पधारे प्रिंसिपल डॉ बी बी शर्मा का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया।
इस अवसर पर विभाग द्वारा "निबंध लेखन " और "प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन करवाया गया, जिसमे बी ए प्रथम वर्ष , एम ए प्रथम वर्ष व् एम ए द्वितीय वर्ष के छात्र छात्राओं ने भाग लिया।
निबंध लेखन में एम ए संस्कृत प्रथम वर्ष की छात्रा प्रवीण प्रथम रहीं, बी ऐ प्रथम वर्ष का छात्र गगन द्वितीय रहा, तथा एम ए प्रथम वर्ष की छात्रा ऋतू शर्मा तृतीय रहीं। हिमानी को सांत्वना पुरुस्कार दिया गया तथा प्रशोत्तरी प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया।
अंत में प्रिंसिपल डॉ बी बी शर्मा ने मातृभाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इस कार्यक्रम की सराहना की तथा कहा कि सामाजिक चेतना का विकास मातृभाषा के माध्यम से ही होता है। हिंदी ही वह भाषा है जो हमें समाज की बुनियाद से जोड़ती है। इसके बिना तो हम भारतीय किसी भी क्षेत्र में विकास ही नहीं कर सकते।
कार्यक्रम की सराहना करते हुए प्रिंसिपल शर्मा ने कहा,इस प्रकार के प्रतियोगिता बच्चों को उनकी संस्कृति और भाषा के निकट रखती है।