” प्रिंसिपल डॉ अनूप वत्स और प्रिंसिपल डॉ संजीव शर्मा का डी ए वी कॉलेज में हुआ विशेष सम्मान “
“अगर डी ए वी अजमेर मेरा शरीर है तो डी ए वी जालंधर मेरी रूह है ”
– प्रिंसिपल अनूप वत्स
“डी ए वी जालंधर मेरी कर्म भूमि है, 29 साल बाद उसी कॉलेज में शिक्षिक बना जहाँ मुझे प्रवेश नहीं मिला था”
– प्रिंसिपल संजीव शर्मा
“डॉ अनूप और डॉ संजीव दोनों ही बेहद विनम्र पृष्टभूमि से है, बड़े ही व्यवहारिक है इसीलिए वह शीर्ष स्थान पर है।
– प्रिंसिपल डॉ बी बी शर्मा
डी ए वी कॉलेज में कल एक शानदार सम्मान समारोह का आयोजन किया गया, मौका था कॉलेज में शिक्षिक रहे डॉ अनूप और डॉ संजीव के डी ए वी के विभिन्न संस्थाओं में प्रिंसिपल बनने की ख़ुशी को मनाने का।
प्रिंसिपल डॉ अनूप और प्रिंसिपल डॉ संजीव का सम्मान प्रिंसिपल डॉ बी बी शर्मा, डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ किरंजीत रंधावा, स्टाफ सेक्रेटरी डॉ संजीव धवन और संजुक्त स्टाफ सेक्रेटरी प्रो मनीष खन्ना नें स्मृति चिन्ह् और शॉल ओढ़ कर किया। इसके उपरांत श्रीमती चंचल वत्स और श्रीमती नीरू भारती शर्मा को भी प्रिंसिपल शर्मा और डॉ किरंजीत नें पुष्प गुच् भेंट करके किया।
कार्यक्रम का संचालन स्टाफ सेक्रेटरी डॉ संजीव धवन नें किया, डॉ धवन नें सबका स्वागत करते हुए उपस्थित और मुख्य अतिथियों का परिचय सभी स्टाफ मेंबर्स से करवाया। इसके पश्चात पुराने साथियों नें अपनी व्यक्तिगत यादें सांझी की।
प्रो शरद मनोचा नें यादों को ताज़ा करते हुए कहा,भले ही डॉ संजीव इस समय डी ए वी बठिंडा में है लेकिन हमेशा ऐसा ही प्रतीत होता है जैसे वह यही हमारे बीच में ही है। उनमें हमेशा काम करने की बेक़रारी की भावना रही है, चाहे यूथ फेस्टिवल की व्यवस्था हो, कोष जुटाने का काम हो या फिर अथितियों की व्यवस्था का कार्य हो, उसे डॉ संजीव नें हमेशा अच्छे ढंग से निभाया। प्रिंसिपल अनूप पर बात करते हुए प्रो शरद नें कहा, कि “मेरी मुलाक़ात अनुप से 1987 में हुई, हम हमेशा साथ साथ ही रहे हम कॉलेज में इकठ्ठे आये। डॉ अनूप एक कुशल प्रशासक है, कॉलेज में उनके द्वारा कराई गई अलुम्नी मीट 2009 यादगार रही। कॉलेज का ‘हॉल ऑफ फेम” डॉ अनूप की सोच का ही नतीजा था। नैक के समय भी अनूप का अतुलनीय काम रहा ” प्रो शरद नें दोनों अतिथियों को अपनी तरफ से अधिक समृद्ध होने की और अधिक से अधिक उच्चाईयों तक पहुँचने की शुभकामनाये दी।
प्रो एस के मिड्ढा ने अपने विचारों को समक्ष रखते हुए कहा ” डी ए वी के दो नायाब हीरे अलग अलग संस्थाओं में अपनी चमक बिखेर रहे है। दोनों का दिल डी ए वी जालंधर के लिए धड़कता है। डॉ अनूप की बात करते हुए प्रो मिड्ढा नें कहा कि उनकी मुलाकात डॉ अनूप से 1991 में हुई। डॉ अनूप हमेशा ही सामाजित कार्यकर्त्ता रहे। खून दान कार्यक्रम, युवा कल्याण कार्यक्रम, लड़कियों की शादी का आयोजन जैसे कार्यक्रम करने के लिए वह हमेशा तैयार रहते है। डॉ संजीव की बात करते हुए प्रो मिड्ढा नें कहा,डॉ संजीव के साथ उनके पुराने और पारिवारिक संबंध है। वह हमेशा काम पूरा होने तक कड़ी मेहनत करते है। दोनों को शुभकामनायें देते हुए प्रो मिड्ढा नें कहा कि मैं आशा करता हूँ की काम के प्रति आपका हर कदम आपकी मंज़िल बन जाये “
पंजाबी विभाग के मुखी डॉ आर बी सिंह नें कहा, दोनों की प्रिंसिपल के रूप में नियुक्ति और उनके व्यक्तित्व नें प्रिंसिपलों के प्रति मेरी धारणाओं को गलत साबित कर दिया। दोनी बड़े ही बौद्धिक, विद्वान, रचनात्मक और हरफनमौला है। उन्होंने कहा कि जब भी मैं अपनी आत्मकथा लिखूंगा तो अपने बहतरीन दोस्तों की फेहरिस्त में डॉ अनूप को ज़रूर शामिल करूँगा।
कार्यक्रम के आगे प्रिंसिपल डॉ बी बी शर्मा नें अपनी बातों को इस बात से शुरू किया ” आज मैं देखूं जिधर जिधर, मुझे दो दो चाँद आये नज़र” डॉ शर्मा नें डॉ अनूप और डॉ संजीव का कॉलेज में स्वागत करते हुए कहा की उनकी कमी कॉलेज को हमेशा खलती रहेगी। प्रिंसिपल शर्मा नें काव्यात्मक शैली में कहा ” तेरे जाने से कुछ नहीं बदला, पहले जहाँ दिल था वहाँ अब दर्द होता है ” डॉ अनूप पर डॉ शर्मा नें कहा, अनूप बड़े ही मेहनती है, उनके नेतृत्व नें कॉलेज और भी समृद्ध होगा। डॉ अनूप का रवैया संकेंद्रित है, वह बेहद कुशल है,अच्छे वक्ता है और मैं हमेशा ही इनसे बेहद ही प्रभावित रहा। आगे डॉ शर्मा नें शायराना अंदाज़ में कहा ” यह तेरा ज़िक्र है या इत्र है, जब भी करते है महक जाते है “
डॉ संजीव पर केंद्रित होते प्रिंसिपल शर्मा नें कहा, डॉ संजीव अथक और उच्च श्रेणी के कार्यकर्ता है, वह जानते है उन्हें क्या करना है और प्रशासन कार्य में तो डॉ संजीव की पकड़ बेमिसाल है।
प्रिंसिपल शर्मा नें कहा,”डॉ अनूप और डॉ संजीव दोनों ही बेहद विनम्र पृष्टभूमि से है, बड़े ही व्यवहारिक है इसीलिए वह शीर्ष स्थान पर है। यह कहते हुए प्रिंसिपल शर्मा नें अपनी बात खत्म की ” लाज़मी तो नहीं तुझे आँखों से देखूं, तेरी याद आना कोई दीदार से कम नहीँ”
अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए प्रिंसिपल डॉ अनूप नें कहा ” यहाँ खड़े मेरे मुझमें अजीब और मिश्रित भावना आ रही है। मैंने प्रिंसिपल शर्मा से बहुत कुछ सीखा है, मेरी व्यक्तिगत और पेशेवर ज़िंदगी डी ए वी कॉलेज की ही देन है। मैंने जो भी कुछ सीखा इसी कॉलेज से सीखा। मैं जब कुछ नया करता हूँ, हमेशा डी ए वी जालंधर को याद करता हूँ। अगर डी ए वी अजमेर मेरा शरीर है तो डी ए वी जालंधर मेरी रूह है । जब भी कभी जालंधर अवकाश होता है तो जालंधर के स्टूडेंट्स मुझे फोन करके पूछते है कि क्या कॉलेज में छुट्टी है…. कभी महसूस ही नहीं हुआ की मैं जालंधर से अजमेर आ चूका हूँ”
डॉ संजीव नें अपने विचारों और यादों को ताज़ा करते हुए कहा, ” मैं नहीं जनता कहाँ से शुरू करू, मेरे रोम रोम में डी ए वी जालंधर की यादें है। उन्होनें कहा 1982 में मैं डी ए वी जालंधर में प्रवेश लेने आया था लेकिन देरी होने के कारण न ले पाया। दिल में इस कॉलेज में आने की एक कसक थी और 29 साल बाद में इस ज्ञान के मंदिर में बतौर शिक्षिक यहाँ नियुक्त हुआ। मैं बहुत किस्मत वाला हूँ जो डी ए वी कॉलेज के परिवार का सदस्य बना। डी ए वी फिल्लौर मेरी जन्म भूमि है, डी ए वी जालंधर मेरी कर्म भूमि है और डी ए वी बठिंडा मेरी धर्म भूमि है।
कार्यक्रम के अंत में संयुक्त स्टाफ सेक्रेटरी प्रो मनीष खन्ना नें धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया। इसके उपरांत सभी के लिए हाई टी (चाय) का भी आयोजन किया गया।