डी ए वी जालंधर में वेद कथा पर विशेष कार्यक्रम में बोले आचार्य श्री राजू वैज्ञानिक

“इस जगत, इस जीवन एवं परमपिता परमेशवर; इन सभी का वास्तविक ज्ञान “वेद” है और “ओ३म्” मानवता का सबसे बड़ा धन है” डी ए वी जालंधर में वेद कथा पर विशेष कार्यक्रम में बोले आचार्य श्री राजू वैज्ञानिक

आज से आर्य समाज विक्रमपुरा, जालंधर की तरफ से शुरू हुआ वेद कथा का विशेष कार्यक्रम, यह कार्यक्रम 27 सितंबर 2015 तक स्थानीय डी ए वी संस्थानों में लगातार होगा। इस विशेष कार्यक्रम की कड़ी में आज सायं सबसे पहले डी ए वी कॉलेज के ऑडोटोरियम में
वेद कथा का विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में यज्ञ-ब्रह्मा एवं महोपदेशक थे आचार्य श्री राजू वैज्ञानिक जी (दिल्ली)।

सायंकालीन सभा में भजनोपदेशके श्री राजेश अमर प्रेमीनें अपनी उपस्थिति दी।श्री राजेश द्वारा गए भजन “कृपा कीजो कृपा निधान….” “बातें जो बनाया करते है,वो करके दिखाना क्या जाने…”सबके गुण अपनी हमेशा गलतियां देखा करों…” “ऐ ऋषि दयानंद प्यारे, टिम टिम करदे तारे…” को सुन कर बैठे सभी मंत्रमुग्ध और आनंदित हो गये।

हार्दिक द्वारा गाये भजन “मेरे साहिबा मैँ तेरी हो मुक्की आ…” से सारा मौहोल मंत्रमुग्ध हो गया।

आचर्य श्री राजू वैज्ञानिक नें वेद पर चर्चा करते हुए कहा, ओ३म् को समझे बिना वेदों का ज्ञान नहीं हो सकता।सामान्य भाषा में वेद का अर्थ है “ज्ञान” ! वस्तुत: ज्ञान वह प्रकाश है जो मनुष्य-मन के अज्ञान-रूपी अन्धकार को नष्ट कर देता है ! वेदों को इतिहास का ऐसा स्रोत कहा गया है जो पोराणिक ज्ञान-विज्ञानं का अथाह भंडार है ! वेद शब्द संस्कृत के विद शब्द से निर्मित है अर्थात इस एक मात्र शब्द में ही सभी प्रकार का ज्ञान समाहित है ।

वेदो पर कहते हुए आचार्य श्री राजू नें कहा,वेद भारतीय संस्कृति के वह ग्रन्थ हैं, जिनमे ज्योतिष, गणित, विज्ञानं, धर्म, ओषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से सम्बंधित ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है ! वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ हैं

वेद दर्पण है, उसमें अपने आत्मिक स्वरुप को देखा जा सकता है, वेद इंसान को “देव” बना देते है, सम्पर्ण की भावना को पैदा करते है।आचार्य नें कहा अक्सर एक सवाल पूछा जाता है कि क्या वेद जीवन को जीने का सूत्र बताते है ? इससे समझनें के लिए आचार्य राजू जी नें एक कहानी सुनाई- जीवन में अंधकार कैसे ख़त्म हो, इसको जानने के लिए देवता,मनुष्य और असुर मिलकर प्रजापति के पास गए और उनसे जीवन के सूत्र पर उपदेश माँगा। प्रजापति नें बड़े ही सरल तरीके से सभी को उपदेश देते हुए कहा ‘द’। इस उपदेश पर सब चकित रह गए, आखिर यह ‘द’ क्या है, इसे जाननें के लिए सभी ने प्रजापति के पास अलग अलग जाने का सोचा। पहले असुर गए और उन्होंने प्रजापति से ‘द’ का अर्थ पूछा, प्रजापति नें कहा तुम क्रूर हो, अत्याचारी हो तुम ‘दया’ करना सीखो। जब देवता गए तो प्रजापति ने कहा तुम अभिमानी हो तुम ‘दमन’ (आत्म संयम) करना सीखो। मनुष्य नें जब ‘द’ का अर्थ जानना चाहा तो प्रजापति नें कहा तुम कंजूस हो तुम ‘दान’ करना सीखो।वेद दया,दमन (आत्म संयम) और दान करना सिखाता है यही जीवन का आधार है।

अंत में आचार्य श्री राजू जी नें कहा “वेदों के अध्ययन से मनुष्य सभी आघ्यात्मिक एवं लौकिक विद्याओं को जानने में समर्थ होता है। कुछ शेष बचता ही नहीं है”।

प्रिंसिपल डॉ बी बी शर्मा नें आचार्य श्री राजू वैज्ञानिक जी,श्री राजेश अमर प्रेमी और आये उपस्थित मेहनानो का धन्यवाद करते हुए और एंग्लो वैदिक की महत्ता बताई जो भारतीय चिंतन और भारतीय संस्कृति के साथ आधुनिक प्रौद्योगिकी के संगम हैं। आगे प्रिंसिपल शर्मा नें कहा की आगे बढ़ने के लिए प्रार्थनाओं का सहारा ले, अब समय आ गया है की हम सभी वेदों के दिखाये मार्ग पर चले और अपने जीवन को सफल बनाये।

मंच का संचालन डॉ मीनू तलवार नें किया।

धन्यवाद प्रस्ताव प्रिंसिपल डॉ रेखा कालिया भारद्वाज नें पेश किया।

भजन संध्या में लोकल मैनेजमेंट समिति के प्रधान सेठ कुंदन लाल अग्रवाल,श्री अरविन्द घई (सेक्रेटरी सी एम सी,नई दिल्ली एवं मेंबर एल एम सी)प्रिंसिपल डॉ बी बी शर्मा,प्रिंसिपल डॉ रेखा कालिया भरद्वाज,श्री इंदर जीत तलवाड़,श्री रविंदर कुमार शर्मा,श्री सी एल कोछड़, कॉलेज के रजिस्ट्रार प्रो वी के सरीन,चीफ वार्डन प्रो टी डी सैनी, डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ किरंजित रंधावा,पी आर ओ प्रो मनीष खन्ना,श्री अजय महाजन,डॉ विजय कुमारी गुप्ता, प्रो ऋतु तलवाड़, श्री ध्रुव मित्तल,प्रो राजन शर्मा,प्रो भुवन, प्रो सिमरन प्रीत,य प्रो मोनिका, प्रो प्रवीण लता, प्रो गुलशन,प्रो दिव्या, श्री अश्वनी कोछड़,श्री अजय कुमार, प्रो अजय अग्रवाल, प्रो सुनील ओबरॉय,श्री मोहन लाल,श्री राज कुमार महाजन,श्री सुरिंदर नाथ मेयर,श्री सी बी शर्मा, श्री मदन लाल खुल्लर, मैडम रुमिल्ला वर्मा, मैडम रेनू महाजन,श्री अनिल शर्मा भी मौजूद थे।

 

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